शायद कभी बचपन में
या शायद आज भी कभी कभी
आईने के पीछे
हाथ बढाकर टटोलने कि कोशिश कि मैंने
कि ...............
अपना वजूद समझ में आ जाए .
लेकिन ...................
आइने में दिखने वाले
उस पूर्णतया आभासी वजूद को
समझने के लिए
अपने आप को टटोलकर नहीं देखा
हाँ ....................
याद आता है
एकबार टटोलने कि कोशिश कि थी
तो ...........................
उसी आइने में
अपना ही अक्स
देखा न जा सका .
4 comments:
आईने के पीछे
अपने वजूद को टटोलने की कोशिश
अपने को समझाने की कोशिश है मात्र
आँख बंद कर जैसे
रौशनी को तलाशना ...
वजूद को अपने
सच में पाना है तो उसे
आईने के पीछे टटोलने का बहाना नहीं
आईने के आगे उसे धर दबोचने की
हिम्मत करो ...
nice poem. call back
सर मैंने आपकी कविता " वजूद " पढ़ी जिसे पढने के बाद मैं उलझन में पढ़ गया हु क्यूंकि मुझे लगता है की वजूद शब्द का अर्थ होता है आपका अपना अस्तित्व/आपकी अस्मिता जिसका पता या तो आप अन्य लोगो के बीच रहकर लगा सकते या फिर आपके के वजूद को इस बात के आधार पर जाना जा सकता है की आपके व्यक्तित्व और आप से जुडी किसी बात में कितना भार है तोह फिर भला ऐसे में किस तरह कोई व्यक्ति अपना वजूद आइने या दर्पण में
sir aap ne jo likha hai wo to yado ke desh me ak village hai
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