टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी

Tuesday, December 21, 2010

बदलते मुल्य, दु:खी मनुष्यता

मित्रों
बहुत दिनों के बाद आज खटरागी का मन हुआ. दिल उदास था, अपना मूल्याङ्कन करना चाहता था कि एक खबर पर नज़र पड़ी . ट्राफिक के बीच में एक व्यक्ति को चाकू मार दिया जाता है , और वह भी बाकायदा कार रोक कर उससे नीचे उतार कर. पुलीस की पीसीआर भी मौके से गुजरती है लोगों के कहने के बावजूद  duty ऑफ हो गयी है कह कर चले जाते हैं. 
क्या समाज के नैतिक मुल्य इतने कमजोर हो गए हैं, या फिर मनुष्यता / इंसानियत के लिए कोई जगह नहीं बची है . 
दुःख होता है , ऐसे मूल्यों के ह्रास पर और मनुष्यता के पतन पर 

आपका 
सुधीर के रिन्टन