दरअसल , बात उनदिनों की है जब हम मुख्य धाराकी मिडिया से हालिया अलग होकर पठन - पाठन की ओर बढरहे थे । मैं कभी किसी मंच पर अपने विचार रखता तो अमिताभ जी मुझे बामपंथी विचारधारा का व्यक्ति कहा करते थे । हालाँकि न तो तब और न ही आज मैं किसी पंथ का था और हूँ। लेकिन जीविकोपार्जन की भाग - दौड़ में जब मैं मिर्ज़ापुर के उन इलाकों की यात्रा करके लौटा था तो एक कसक थी की आखिर वे कौन से तथ्य हैं जो किसी मजदूर को बन्दूक थमा देते हैं। मैंने सच्चाई देखी और समझी थी । मैं जिस अख़बार के लिए लिखता था उसमे एक खबर आई की तारकोल के गड्ढे में गिर कर ५ बकरिया मर गई । शायद ज्ञान की कमी की वजह से मैं उस खबर भेजने वाले पर हंसा भी था ( आज माफी मांग लेता हूँ ) । लेकिन बाद में जब पता चला की सीजन में चुने गए महुए के फूल पुरे साल पेट की आग बुझाने का साधन है, और पूंजी के नाम पर १ या दो बकरी । मरने वाली ५ बकरियों से कुल तीन परिवारों की जमा पूँजी लुट गयी थी ।
तकलीफ हुई और होनी भी थी , साथ ही साथ एक कसक भी हुई की आखिर इन परिवारों में जीवन कहाँ है ? और निर्वाह कैसे होता है ? पता करने पर निम्न बातें सामने आई ।
परिवार में सदस्यों की संख्या ---------- ५ या ५ से अधिक
आमदनी का जरिया ------------------- पत्थर की खान में दैनिक मजदूरी
प्रति दिन आय ---------------------- दो अंकों में
प्रति सप्ताह कार्य दिवस --------------- ७
लगा यदि यही हालत हैं तो धीरे धीरे सबकुछ रस्ते पर आजायेगा , लेकिन कुछ सच्चाई और भी थी जैसे ।---
परिवार में कमाने वाले सदस्यों की संख्या ---------- १ या 2
आमदनी का बटवारा ------------------- ५० % पुराने कर्ज की अदायगी १० % खुद पर (जिसमें महुआ बड़ा भाग लेता था व दवा पर होने वाला खर्च अलग )
प्रति वर्ष कार्य --------------- चार से ६ माह
बचत ---------------------- एक बड़ा सवाल ( हँसना और कुछ नहीं )
आश्रितों में अक्सर बेरोजगार नौजवान और विकलांग अधेड़ शामिल ।
कालांतर में विद्रोह / क्रांति या भटकाव का रास्ता और मजबूत हुआ । और मुझे इन विद्रोही / भटके हुए लोगों के लिए गुस्सा नहीं आता था बल्कि मैं उनकी समस्याओं का निवारण करने के लिए सरकार की नीतियों में होने वाले बदलावों की खबर पढ़ना चाहता था ।
उनकी समस्याओं की व्यथा मेरे विचारों में दिखाती थी । कल जब अमिताभ जी ने पूछ लिया की
क्यों आजकल ख़बरें पड़ने के बाद भी आप वाही कहते हैं ? तो दुबारा मैं उसकी समीक्षा करने बैठा और काछे पक्के कुछ बिंदु उभर कर सामने आये । थोड़े विचार मंथन के बाद उनकी चर्चा अगले लेख में करूंगा की मैं आज क्या सोचता हूँ
तब तक के लिए अनुमति दें ।
2 comments:
Badhai. lekhan vastav me khud ki khoj bhi hai. Rajdhani ke rajpath par chalte chalte agar gaanv ki galiyan yaad hain, to Yah uplabdhi hai. ummede hai in pagdandiyon par aage bhi badhenge
bilkul sahi keha amitabh ji ne :)
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