अपनी पिछली पोस्ट में मैंने ब्लोगेर मिलन के बारे में लिखा था । साथ में एक संभावना व्यक्त की थी की हमें मकसद की तलाश में कितनी मदद मिलेगी ।
बस एक जज्बा लेकर चलने वालों से मिलकर अच्छा लगा और जज्बे को सलाम करते हुए मैंने भी साथ चलने की ठान ली है।
अब थोड़ी बात उस मानसिकता की जो मैंने उस मीट की सूचना और ख़बरों की प्रतिक्रियाओं में दिखी । अगर कुछ भाई मिलकर बैठते हैं और कुछ सकारात्मक सोचते हैं तो मेरे पेट में दर्द क्यों होता है ? यह समझ नहीं पा रहा हूँ । अरे बनाने दो संगठन । कुछ करने तो दो भाई । क्यों धरती में पड़ने वाले बीज से कड़वा फल मिलेगा मान बैठे हैं आप ।
चलो संतान लोफर होगी या काबिल इसकी चिंता में वंश परंपरा को आगे न बढ़ाएं ? अगर ऐसा सोचेंगे तो प्रगति का रास्ता बंद होगा और अनिष्ट की आशंका में हम कर्म विहीन होकर रह जायेंगे । सकारात्मक सोच ही प्रगति ला सकती है ।
2 comments:
आपका आना और जुड़ना
मन को खूब भला लगा।
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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