टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी

Tuesday, September 27, 2016



शनीचर की  आँख 

प्रिय संपादक जी 

सस्नेह अभिवादन 

सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत  धन्यवाद कि मेरी पिछले हफ्ते कि गुज़ारिश आपने ज्यों कि त्यों छाप दी थी।  हालाँकि आज तक कोई स्वजातीय भाई अपने बेटे से दहेज़ रहित  शादी करने  लिए आगे नहीं आया  हैं।  

खैर छोड़िये आज़ मैं अपने एक मित्र कि समस्या लेकर आपके सम्मुख उपस्थित हूँ, या यूँ कहूँ कि समस्या विकट है मित्र के सिर पर और भार मैं ढो रहा हूँ।   दरअसल उनकी समस्या ये है कि वो एक किराये के घर में रहते हैं जिसका किराया प्रति माह समय से चुकाते हैं ,  उनका मकान मालिक उन्हें कोई रसीद नहीं देता है।  सरकारी कार्यालय में कार्य करने वाले हमारे मित्र को,इनकम टैक्स कि बचत के लिए रसीद  कि ज़रूरत थी तो अपने मकान  मालिक से मांग बैठे  ।  नतीज़तन मालिक माकन ने उन्हें कहीं और शिफ्ट करने कि सलाह दे डाली।  उनके ज़ोर देकर कहने पर उसी रात माकन खाली करने का दबाव बनाया  या यूँ कहें कि विवश कर दिया , अब मेरे वो मित्र सपत्नीक मेरे डेढ़ कमरे के किराये वाले घर में पिछले तिन दिनों से ठहरे हुए हैं।  समस्या एक नए आवास के इंतिज़ाम की है।   इधर उधर ढूंढ भी चूका हूँ और कोई आवास नहीं पा सके हैं हम   लोग,  अगर आपको कोई ऐसा मकान दिखाई दे तो कृपया हमें ज़रूर बताएं।  

अभी मित्र कि समस्या तो मेरे गले पड़ी ही है कि मेरे ऑफिस से भी किराये कि रशीद और मालिक मकान  का पैन नंबर मांग लिया गया है।  आप पढ़े लिखे आदमी हैं और आप मुझे ये सलाह दें कि मैं अपने मकान मालिक से रशीद और पैन नंबर मांगूं या नहीं क्यों कि अगर मेरी हालात भी मित्र जैसे बने तो अब  मैं समित्र , सपत्नीक किसके घर पहुंचु सोच नहीं पा रहा हूँ. 
 कृपया सुझाव ज़ल्दी भेजें ताकि मैं ऑफिस में ज़मां कर सकूँ  . जानता हूँ  आप रसीद और पैन जैसे झमेले में बड़े सतर्क रहते हैं  लेकिन मेरा क्या कृपया सुझाएँ।  

जय शनिचर 


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