फिर क्या हुआ क्या कहें .......................... ( आप उसका समेकित सारांश खुद पढ़ लें )
वर्ष भर पहले घर परिवार से दूर दो रोटी के लिए उसीतरह के किसी मित्र के कहने पर अपनी जमी जमाई गृहस्थी छोड़ कर दिल्ली आ गया था . मित्रों का सहयोग मिला और एकबार फिर से दूसरी पारी की शुरुआत हो गयी ( स्पस्ट कर दूं कि पत्नी पहली वाली ही हैं ) . टुकड़ा - टुकड़ा जुड़ा और मित्रों को सहृदय धन्यवाद देकर चल पड़ी ज़िन्दगी . कुछ नए मित्र भी बने ..........कुछ सहकर्मी मित्र बने और कुछ मित्र सहकर्मी . मित्रता और प्रोफेशनालिस्म का घाल मेल सा बना और हो गयी गलती ...................
मैं भी प्रोफेशनल हो गया .
अब कुछ मित्र भी प्रोफेशनल वर्ताव करने लगे ..................
चलो ठीक रहा ..................... हम प्रोफेशनल लोग दूसरों कि मदद भी व्यवसायीक तरीकों से करते हैं . ......
फिर उन मित्रों का क्या ? जिनसे मुझे मदद मिली .......................और उन मित्रों का क्या जिनके साथ मैं दुःख के समय खड़ा रहा .
अब तो साथ खड़े मित्र में भी दो भाग दिखाई देते हैं , एक मित्र है और दूसरा प्रोफेशनल , या कभी कभी उल्टा भी .
अब तो मित्र और प्रोफेशनल के बिच का फर्क और जरूरत दोनों देखकर हाथ मिलाना पड़ता है .
क्या मित्रता भी प्रोफेशनल तरीके ( कृपया इसे गाली न समझें ) से करें ?
क्योंकि कुछ मित्रों की प्रोफेसनल समझ मित्रता के दायरे में समेटे नहीं आती..............................
वार्ता का लुब्बो लुआब यही था और .......................
मैं सोचता रहा की जवाब क्या दूं कि पलकें भरी होने लगीं और मैं सोने चला गया .इस पूरी बातचीत के बाद मेरे मित्र ने कहा की चलो यार अपने लखनऊ लौट चलो कम से कम इस जगह के जाम, काम और फिर जाम की नीरस दिनचर्या से बच जाओगे
शुभ - रात्रि
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