अगर इस पुरे घटनाक्रम को गौर से देखें तो तीन बातें प्रमुखता से निकल कर आती हैं ।
- केन्द्र सरकार महारास्त्र में अपनी पार्टी की सरकार होने के बावजूद सिर्फ निंदा ही क्यों कर पा रही थी ।
- केन्द्र द्वारा कार्ड कदम उठाने की घोसदा और राज की प्रेस वार्ता का एकसाथ होना क्या दर्शाता है।
- क्या किसी दूसरे दल की सरकार होने पर तथा अवाम केसंवैधानिक आधिकारों के दमन के समय ( जैसा की महारास्त्र में हो रहा था ) क्या ला एंड आर्डर के नाम पर धारा ३५६ का प्रयोग केन्द्र सरकार नहीं करती ।
जाहिर है समूचा घटना क्रम जो दिखता है वह निहित इस बात में है की कांग्रेस को अपने विरोधी दल शिव सेना और बीजेपी से टक्कर लेने के लिए आपनी मजबूती के साथ साथ उनका कमजोर होना ज्यादा बेहतर लगा । इसके लिए उसे राज ठाकरे जैसा मुर्गा सामने दिखा जिसे सूली पर चर्दय जा सकता था। राज को भी लगा की मराठी मानुष के नांम पर वे आपनी राजनितिक जमीन तलाश सकते हैं। कांग्रेस के लिए ये दोनों हाथ में लड्डू जैसा था । शिव सेना कमजोर होगी और राज मजबूत ऐसे में कांग्रेस को आपना फायदा दिखाना लाजिमी था । इस चलका विरोध बालठाकरे जैसा मर्थिमानुश्वादी अतिवादी व्यक्ति भी नही कर सकता था क्योंकि इससे उसे राजनितिक नुकसान उठाना परता।
जब कांग्रेस को ये तस्सली हो गयी की अब इसकी कोई जरूरत नही रही तो उसने रिमोट से राज का चॅनल बदल दिया और प्रेस कॉन्फरन्स के मार्फत बयां आया की मेरी बात को समझा नहीं गया ।
वह रे नेता और वह रे राजनीती ।
अवाम चाहे मरे या जिए हमारा वोट हमारी कुर्सी सलामत रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार ये नेता बैठे हैं।
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