बेहतर था सुनना उन विचारों को जो पर्दादारी से अलग, आपसी समझ की ओर उन्मुख
करने वाले थे .ओउरे विमर्श में मैं एक श्रोता की तरह उपस्थित रहा, अपने स्वभाव के अनुरूप अपने छात्रों के साथ ब्लॉग जगत की जरूरियात को समझाने के लिए ग्राह्य करता .
सुना, गुना फिर एक ख्याल आया जिसे मजबूरन लिखना पड़ा .
कभी मैं अपने ब्लॉग में इसका जिक्र कर भी चूका हूँ कि, " सामाजिक माध्यम ( ब्लॉग) एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में ऐसा हतियार है जिसका इस्तेमाल सरकारों को उसके फैसले बदलने को मजबूर कर देगा" इतनी क्षमता है इसमें, इसका कोई संदेह नहीं, .........................
पर ......................
आखिर कैसे ?.....................
क्या इसलिए लिखकर कि कमेन्ट मिलें ? ......या फिर इसलिए लिखकर कि मेरी ब्लॉग संख्या ज्यादा हो जाए . ............
या फिर नाम और प्रसिद्धी के लिए ..............................
एक शोध छात्र होने के नाते मैंने ब्लॉग को एक ऐसे मिडिया के रूप में देखता रहा जिससे समाज को एक सकारात्मक दिशा मिले , सूचना प्रवाह के गितिरोध दूर होंगे और व्यावसायिक मिडिया में न दिखने वाले मुद्दों को एक जगह मिलेगी . और वास्तव में ब्लॉग जगत का सही प्रयोग इन मायनों में हो तो कुश सकारात्मक बात बन सकेगी .
लगा अब पड़ने के साथ थोडा लिखना भी जरुरी है न सिर्फ लिख्हदों के लिए बल्कि हमारे जैसे उन गुपचुप पाठकों के लिए भी, हम जिन मुद्दों पर लोगों कि राय जानना चाहें उनपर लिखें और बेहतर लिखें पाठक खुद बा खुद हमसे जुड़ेगा और ब्लोगिंग के सही मायने तभी सार्थक होंगे .
आपका
सुधीर के रिन्टन
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